।। शास्त्रयोनित्वाधिकरणम 3।।

शास्त्रयोनित्वात।। 1 . 1 . 3 .।।  श्रुति -स्मृति आदि शास्त्रों से ,ब्रम्ह के जो लक्षण,सिंद्धांत सिद्ध है ;उससे ब्रम्ह का ज्ञान प्राप्त होता है। 


उदाहरणार्थ -श्वेता 0 6,8; 6,11 माण्डू 6; 7 ; शास्त्रार्थादि से -''उसके कार्य और अन्तःकरण तथा इन्द्रियरूप कारण नहीं है ,उससे बड़ा और उसके समान भी कोई नहीं है।  उस ब्रम्ह का ज्ञान बल और क्रियारूप तथा उसके स्वरुपभूत नाना प्रकार की दिव्य शक्तियाँ शास्त्रों में सुनी जाती  है "। वह परंब्रम्ह कैसा है ,इस पर यह श्रुति कहती है ''वह एक देव ही सभी प्राणियों के हृदय में छिपा है ,वही सर्वव्यापी और समस्त प्राणियों का अन्तर्यामी परमात्मा है। वही सबके कर्मो का अधिष्ठाता और वही सम्पूर्ण भूतों का निवास स्थान ,सबका साक्षी ,चेतन स्वरूप,सर्वथा विशुद्ध,गुणातीत भी है ''। इस श्रुति को दूसरी श्रुति के कथन से स्पष्ट किया जाता है। ''ब्रम्ह ही सबका ईश्वर है ,यह सर्वज्ञ,सभी का अन्तर्यामी और सम्पूर्ण जगत का कारण तथा सम्पूर्ण प्राणियों के उत्पत्ति;स्थिति एवं प्रलय का स्थान भी यही है ''।  यही श्रुति आगे बताती है कि 'इसको न बाहर से,न भीतर से,न बुद्धि से जाना जा सकता है और न जानने वाला है। जो देखा गया नहीं है,जो व्यवहार में नहीं लाया जा सकता,जो पकड़ने में नहीं आ सकता, जिसका कोई लक्षण नहीं है, जो चिन्तन करने में नहीं आ सकता,बतलाने में भी नहीं आ सकता, जो एकमात्र सबका सार और परमात्मा सत्ता है। जिसमे प्रपञ्च का सर्वथा अभाव है, ऐसा सर्वथा शान्त,कल्याणम अद्वितीय तत्व वह परमात्मा है और वही एकमात्र जानने के योग्य''।  इस प्रकार से श्रुति वाक्यों में परब्रम्ह परमेश्वर के अनेकों वर्णन मिलते  है। 


सम्बन्ध-'जन्मादि' परमात्मत्व लक्षण का जो ज्ञान है, उसे श्रुति शास्त्रादि सम्मत सिद्धांतो से सिद्ध कर के जानना चाहिए।


पूर्वसूत्रसारांश - जगदोत्पत्ति, सर्वभूतो की स्थिति और पालन करना तथा समस्त जगत को प्रलयावस्था में अपने में लय करना आदि परब्रम्ह के ये तीन मुख्यलक्ष्ण निर्धारति हुए। आगे विभिन्न सूत्रों में और भी परब्रम्ह-परमेश्वर के मुख्यलक्ष्ण निर्धारित किये जायेंगे। 


विचारार्थ -वेदान्त शास्त्रों में वर्णित 'परमात्मत्व दर्शन' से ब्रम्ह में मुख्य लक्षणों के निर्धारण का विचार किया गया है। 


भावार्थ -शास्त्रों के कथन से ज्ञात होता है, कि ब्रम्ह अद्वितीय सर्व व्यापी,परमपुरुष और सर्वशक्तिमान है,क्योकि उदाहरणार्थ में प्रस्तुत सभी श्रुतिवाक्यो से ऐसा भाव ज्ञात होता है। साथ ही में पूर्वसूत्र में कहे हुए जगत कारणत्व से उत्पति ,पालन और संहारत्व को वे श्रुतियाँ पुष्टि करती हैं। इससे सिद्ध होता है, परमेश्वर को जानने में सभी सद्ग्रन्थ एवं श्रुति शास्त्र सहायक है। यह शास्त्र भी निश्चित ही ब्रम्हत्व ज्ञान प्राप्त कराने में सर्वोत्कृष्ट भूमिका निर्वाह करेगा तथा विभिन्न सूत्रों से परमात्मत्व   के मुख्यलक्ष्णों को भी निर्धारित करेगा। 


 


  


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