सूर्य,गुरु की राशि धनु या मीन में होती है उस समय को खरमास कहा जाता है

खरमास को खर मास कहने के पीछे भी पौराणिक कथा है। खर का तात्पर्य गधे से है।  मार्कण्डेय पुराण के अनुसार ,सूर्य अपने सात घोड़ो यानि रश्मियों के सहारे इस सृष्टि की यात्रा करते है। परिक्रमा के दौरान सूर्य को एक क्षण भी रुकने और धीमा होने का अधिकार नहीं है। लेकिन अनवरत यात्रा के कारण सूर्य के सातों घोड़े हेमंत ऋतु में थककर एक तालाब के निकट रुक जाते है,ताकि पानी पी सकें। सूर्य को अपना दायित्व बोध याद आ जाता है कि वह रुक नहीं सकते है ,चाहे घोडा थककर भले ही रुक जाए। यात्रा को अनवरत जारी रखने के लिए तथा सृष्टि पर संकट नहीं आए,इसलिए भगवान भास्कर तालाब के समीप खड़े दो गधों को रथ में  जोतकर यात्रा जारी रखते है गधे अपनी मंद गति से पूरे पौष मास में ब्रम्हांड की यात्रा करते रहे,इस कारण सूर्य का तेज बहुत कमजोर हो धरती पर प्रकट होता है। मकर संक्रांति के दिन पुनः सूर्यदेव अपने घोड़ो को रथ में जोतते है,तब उनकी यात्रा पुनः रफ्तार पकड़ लेती है। इसके बाद धरती पर सूर्य का तेजोमय प्रकाश बढ़ने लगता है। 


जब सूर्य देव गुरु की राशि धनु या मीन में विराजमान होते है,उस समय को खरमास कहा जाता है। पौष खरमास का मास है,जिसमे किसी भी तरह का  मांगलिक कार्य,विवाह,यज्ञोपवित या फिर किसी भी तरह के संस्कार नहीं किये जाते हैं। तीर्थ स्थल की यात्रा करने के लिए खरमास सबसे उत्तम मास माना गया है।