उत्तर मीमांसा। ....... ।। 5 ईक्षत्यधिकरणम 5 ।।

ईक्षतेर्नाशब्दम।। 1. 1. 5।। ईक्षतेः =इच्छा चेतनतत्त्व में ही सम्भव है और चेतना का स्रोत एकमात्र ब्रम्ह है। न अशब्दम =शब्द प्रमाण से रहित ,जड़ प्रकृति में ईक्षण करना नहीं हो सकता है। 


उदाहरणार्थ -छा 0 6 ,2,3 ;ऐत 0 1 ,1 ,1; प्रश्नो 0 6,3 -4;शास्त्रार्थादि से -''परब्रम्ह परमेश्वर में ईक्षण हुआ कि ' मैं बहुत हो जाऊ ,नाना प्रकार से उतपन्न होऊ' इस प्रकार ईक्षण कर उसने जल की रचना की। '' इस प्रकार से नाना प्रकार की शक्तियॉ ,परमेश्वर के इच्छा-संकल्प मात्र से उतपन्न हो गयी। ''इस जगत में तेज के उतपन्न होने के पहले एक मात्र परमात्मा ही था ,दूसरा कोई भी चेष्टा करने वाला नहीं था,उसने लोकों की रचना करने का निश्चय लेकर इच्छा पूर्वक विचार किया ''। उसकी ही इच्छा ,सूक्ष्मभाव से जड़ में भी प्रवृत होकर ,अंकुरण करते हुए ,अन्य सभी की उत्पत्ति करता है। ''उस परब्रम्ह परमेश्वर ने इच्छा पूर्वक विचार किया, मै जिस ब्रम्हांड की रचना करना चाहता हूँ, उसमे ऐसा कौन सा तत्व  डाला जाय की जिसके न रहने पर मैं स्वयं भी उसमे न रहू और जिसके रहने पर मेरी सत्ता स्पष्ट प्रतीत होती रहे ''। ऐसा यह सोच कर उसने सबसे पहले ऐसे ही एक तत्व 'इच्छा भूत प्राण 'की रचना किया; ''सर्वप्रथम प्राण की रचना की ,प्राण के बाद श्रद्धा को उतपन्न किया उसके बाद क्रमशः आकाश ,वायु,तेज,जल,और पृथ्वी ,ये पंच महाभूत की उतपत्ति के बाद,मनसहित इन्द्रियों की उतपत्ति की। तत्पश्चात अन्न और अन्न से समस्त प्राणियों के वीर्य की उतपत्ति किया ;उससे तप और तप से मन्त्र तथा मंत्रों से कर्मो की उतपत्ति हुई। उसके फ़लस्वरूप विभिन्न लोको का निर्माण हुआ''। इस प्रकार से परम चैतन्य की ही इच्छा शक्ति ; स्थूलजड़ पदार्थो में भी प्रवेश करके ,श्रेष्ठतम निर्माण होते रहने के लिए परिवर्तन क्रम दिया है। 


संबंध -जगत का जन्मादि कैसे होते है, इसके लिए 'अनादि ईक्षणत्व ब्रम्ह' अर्थात ' ईक्षणत्व' को बताया जाता है। 


पूर्वसूत्रसारांश - इस ग्रंथ में ब्रम्हात्मज्ञान को,सभी श्रुति- स्मृति आदि शास्त्र सिद्धांत से ,सभी प्रकार की ब्रम्हविद्याओं का परस्पर समन्वय करेगी। जिसमे सभी 'परमात्मत्त्व प्रतीकों 'का और 'सभी पंथ तथा सम्प्रदायो एवं धर्मो' का ब्रम्हविद्यांतर्गत परस्पर समन्वय करेगी। यह समन्वय उस 'सर्वसमन्वय विज्ञानस्वरूप परब्रम्ह परमेश्वर' के तत्वतः दर्शन से ही सम्भव होता है। यह परमब्रम्ह परमेश्वर भी विधि -विधानों में समन्वित होने से ही वह 'सर्वसमन्वय विज्ञानस्वरूप ब्रम्ह' के रूप में  चतुर्थलक्षण सिद्ध हो जाता है। 


विचारार्थ -परब्रम्ह परमेश्वर के द्वारा किस तत्व से सम्पूर्ण जगत की रचना हुई है। 


भावार्थ - इस ब्रम्हाण्डोतप्ति के पूर्व जब पृथ्वी ,स्वर्ग आदि लोक नहीं थे ,देव-दांव,मनुष्य और समस्त प्राणी तथा वनस्पतियो का समूह नहीं था,आकाशादि पंच महाभूत एवं प्राण भी उतपन्न नहीं हुआ था ;नाम,रूप,शब्द,अक्षर संज्ञा आदि कोई किसी प्रकार का चिन्ह भी नहीं था।  अंधकार और प्रकाश भी नहीं थे,तब उस समय एकमात्र 'परम्सत्त परमेश्वर' आत्मा स्वरूप में था। वह परमसत उस स्थिति में असत की निवृति के लिए असत-असार में से सतसार होकर उतपन्न होता है। उस समय परब्रम्ह परमेश्वर में नानारूप से प्रकट होने वाली इच्छा का प्रादुर्भाव होता है ,इसलिए सर्वप्रथम 'ईक्षणत्व' उतपन्न होता है। उस ईक्षण के  कारण से ही ब्रम्ह 'प्राणरूप 'हो जाता है ,वह महाप्राण 'इच्छाशक्ति के कारण ' से ही ,ईक्षणत्व से योग प्राप्त कर ,समस्त दिशाओ में गतिशील होता है। प्राण का ईक्षणत्व से योग होना ही श्रद्धा है,यह योग सर्वप्रथम नाद ,आकाश और गति आदि की उतपत्ति होती है। इसके बाद क्रमशः वायु,तेज,जल और पृथ्वी आदि महाभूतों की उतपत्ति होती है। उन पंचमहाभूतों के परस्पर संयोग और प्राणशक्ति की गति से संयुक्त होकर समस्त लोक,देव-दानव तथा समस्त प्राणी एवं वनस्पतियों  उत्पत्ति होती है। उसी प्राण के आवागमन से उन सभी का जन्म-मृत्यु और काल का निर्धारण होता है। इस सभी सृष्टिकर्म में अनादि ईक्षणत्व की मुख्य भूमिका है,क्योकि वायु ने ईक्षण करते हुए तेज को,तेज ने ईक्षण करते हुए जल को,जल ने ईक्षण करते हुए पृथ्वी को और पृथ्वी के ईक्षण से समस्त अन्नौषधियाँ उतपन्न होती है। अर्थात परब्रम्ह परमेश्वर के अनादि ईक्षणत्वभूत प्राण से समस्त सृष्टि की रचना होती है। उस अनादि ईक्षणत्व को ही स्मृति शास्त्रों ने महागणेश के रूप में प्रतीक मानकर बताया है,नाद को ओमकार ,गति को आद्या शक्ति,श्रद्धा को परमात्मज्ञान ,और प्राण को अमृतभुत देव के रूप में जाना गया। उस परब्रम्ह परमेश्वर को शैव ='सदाशिव महाशंकर',वैष्णव ='महाविष्णु'के रूप में, गायत्री उपासक ='परागायत्री' ,सूर्य उपासक ='हिरण्यगर्भ' के रूप में उसी अनादि ब्रम्ह को सम्बोधित करते है। इस प्रकार से समस्त वैदिक परमात्मस्वरूपो का परस्पर समन्वय किया जाता है। 


 


            शेष  आगे। -----------------------