भागवत कथा वाचक बृजरज दास महाराज ने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में उत्स्व करना चाहिए। उतसव ही मनुष्य के उत्साह को बढ़ाता है। इसलिए व्यक्ति को उत्सव् करना चाहिए। जब उत्सव् होगा तो उत्साह बढ़ेगा। उत्साह से शरीर को ऊर्जा मिलती है। वे मां वैष्णों देवी भंडारा सेवा समिति आराजी लाइन अदलपुरा के तत्वाधान में रामलीला मैदान में आयोजित भागवत में कथा कह रहे थे।
उन्होंने कहाकि प्रत्येक व्यक्ति को उत्सव् से ऊर्जा मिलती है। उन्होंने भक्त प्रहलाद व उनके पिता हिरण्यकश्प के प्रसंग को विस्तार से बताया। कहाकि प्रहलाद हिरण्यकश्यप के छोटे पुत्र थे। हिरण्यकश्यपू के बार -बार कहने पर प्रहलाद ने सब कुछ छोङ दिया। माँ ,बाप भाई बहन बंधु ,राजपाट सब कुछ छोङ, केवल एक भगवान से भक्ति नहीं छोड़ा। प्रह्लाद से उनके पिता ने बड़ा सुंदर प्रश्न पूछा कि बेटा आज तक तुमने अपने गुरु आश्रम में जो भी ज्ञान प्राप्त किया उसमे से सबसे अच्छा ज्ञान कौन सा लगा। मुझे बताओ तो प्रह्लाद ने कहा कि पिता जी मुझे एक बात ही अच्छी लगी कि जैसे कोई व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में रहकर भगवान के चरणों से प्रित नहीं कर पाए। यदि कोई व्यक्ति आत्मा का उद्धार चाहता है तो वह व्यक्ति घर त्याग कर जंगल में जाय और भगवान का आश्रय ले। यदि जंगल नही जाना है तो घर में ही झोली माला का आश्रय ले तो भी उसका कल्याण हो जायेगा।