ज्ञानहीन सुखी नहीं हो सकता ------

वेदान्त ज्ञान विश्वास से न तो शुरू होता है, न ही विश्वास पर खत्म होता है। जो बात आप वेदान्त में सुनेंगे या पढ़ेंगे, उससे संबंध बनाने में आपको कोई कष्ट नहीं होगा। 'मै' हूँ, अपने होने से किसको इनकार है ? पर मैं कौन हूँ ? वह पता नहीं है। संसार,धन और मान-सम्मान की जितनी गुलामी एक आम इनसान को है, उतनी ही एक पढ़े-लिखे डॉक्टर, वैज्ञानिक को है। क्या फर्क है दोनों में ? एक अनपढ़ रिक्शा वाले को गंभीर बीमारी हो जाए, तो वह भी बैठ कर रोयेगा। ज्ञानहीन कैसे सुखी हो सकता है ? ज्ञानहीन सुखी नहीं हो सकता है।